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बृह॑स्पते जु॒षस्व॑ नो ह॒व्यानि॑ विश्वदेव्य। रास्व॒ रत्ना॑नि दा॒शुषे॑॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

bṛhaspate juṣasva no havyāni viśvadevya | rāsva ratnāni dāśuṣe ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

बृह॑स्पते। जु॒षस्व॑। नः॒। ह॒व्यानि॑। वि॒श्व॒ऽदे॒व्य॒। रास्व॑। रत्ना॑नि। दा॒शुषे॑॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:62» मन्त्र:4 | अष्टक:3» अध्याय:4» वर्ग:9» मन्त्र:4 | मण्डल:3» अनुवाक:5» मन्त्र:4


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (विश्वदेव्य) सम्पूर्ण विद्वानों में उत्तम (बृहस्पते) बड़ी वाणी के पालनकर्त्ता विद्वान् पुरुष ! आप (नः) हम लोगों के लिये (हव्यानि) देने के योग्य पदार्थों का (जुषस्व) सेवन करो और (दाशुषे) देनेवाले के लिये (रत्नानि) सुन्दर धनों को (रास्व) दीजिये ॥४॥
भावार्थभाषाः - हे अध्यापक ! आप हम लोगों के लिये विद्याओं का सेवन करो और हे राजन् ! आप विद्या देनेवाले के लिये उत्तम धन दीजिये ॥४॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

हे विश्वदेव्य बृहस्पते विद्वंस्त्वं नो हव्यानि जुषस्व दाशुषे रत्नानि रास्व ॥४॥

पदार्थान्वयभाषाः - (बृहस्पते) बृहत्या वाचः पालक (जुषस्व) सेवस्व (नः) अस्मभ्यम् (हव्यानि) दातुमर्हाणि (विश्वदेव्य) विश्वेषु देवेषु साधो (रास्व) देहि (रत्नानि) रमणीयानि धनानि (दाशुषे) दात्रे ॥४॥
भावार्थभाषाः - हे अध्यापक ! त्वमस्मदर्थं विद्याः सेवस्व हि राजंस्त्वं विद्यादात्रे उत्तमं धनं देहि ॥४॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे अध्यापका! तू आमच्यासाठी विद्या ग्रहण कर व हे राजा! तू विद्या देणाऱ्यासाठी उत्तम धन दे. ॥ ४ ॥